सुदामा कौन थे ?
यह लेख सुदामा जी के बारे में हैं, उनके जीवन में बहुत से प्रसंग आये हैं इसमें से एक प्रसंग और उनकी श्रीकृष्ण से मित्रता से सम्बंधित कुछ अंश इसमें लिखे हैं।
सुदामा जी का जन्म कब हुआ था ?
सुदामा जी का जन्म अस्मावतीपुर ( पोरबन्दर) गुजरात में हुआ जो अब सुदामापूरी के नाम से भी जाना जाता हैं। ब्राह्मण परिवार में इनका जन्म हुआ था, शिक्षा पूर्ण होने के बाद पुनः वह इसी गांव में आकर रहने लगे, और यही पर उनका विवाह हुआ। बाद में वह अपने बच्चो के साथ इसी गांव में रहते थे।
सुदामा जी के माता-पिता का नाम क्या था ?
सुदामा जी की माता का नाम सत्यवती था और पिताजी का नाम शरङधार था। सुदामा जी के सम्पूर्ण जानकारी श्रीमद भागवत पुराण में हैं।
सुदामा जी की शिक्षा कहाँ हुई थी?
सुदामा जी की शिक्षा सांदीपनि आश्रम (उज्जैन जो उस समय अवंतिका के नाम से जाना जाता था ) में हुई थी, उनके गुरु का नाम महर्षि सांदीपनि था, बाद में वे अपने गांव में अन्य छात्रों को शिक्षा प्रदान करते थे, वे समस्त वेद पुराणों के ज्ञाता थे और एक विद्वान ब्राह्मण के रूप में उन्हें जाना जाता था। वह अपना जीवन यापन ब्राह्मण रीती से भिक्षा मांग कर करते थे।
सुदामा जी की श्री कृष्ण जी से मित्रता
महर्षि सांदीपनि जी के आश्रम में ही सुदामा जी की मित्रता श्री कृष्ण से हुई थी। इनकी मित्रता इतनी गहरी थी की आज तक भी हम उनकी मित्रता की मिसाल देते हैं। सुदामा जी श्रीकृष्ण के मित्र और परम भक्त भी थे।
सुदामा जी एक निर्धन ब्राह्मण थे फिर भी वे हमेशा संतुष्ट रहते थे वे हमेशा हरी भजन किया करते थे, और हमेशा श्री कृष्णा के नाम का जप किया करते थे।
सुदामा और चने की पोटली का प्रसंग
आप सभी ने एक प्रसंग सुना होगा की उज्जैन के पास जहा पर श्रीकृष्ण और सुदामा जी लकड़ी लेने जाते थे उस गांव को आज नारायणा धाम के नाम से जाना जाता हैं, यहाँ पर गुरुमाता के द्वारा दिए गए चने भूख लगने के कारण अकेले सुदामा जी ने ही खा लिए थे श्रीकृष्ण को नहीं दिए थे,
उसके पीछे भी एक कहानी हैं , एक बार कुछ चोरो ने एक ब्राह्मणी के घर से चने की पोटली को स्वर्ण आभूषण समझ कर चोरी की थी बाद में चोर उस पोटली को सांदीपनि जी के आश्रम में छोड़ गए थे
वह पोटली गुरुमाता ने श्रीकृष्ण और सुदामा को वन में जाते समय खाने के लिए दी थी, सुदामा जी बहुत सरल स्वाभाव के थे उन्होंने वह चने अकेले ने खा लिए थे ऐसा हम जानते हैं परन्तु ऐसा नहीं था।
जिस ब्राह्मणी के चने चोरी हुए थे उसने भूख से व्याकुल हो कर श्राप दे दिया था की जो भी यह चने खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा, यह बात सुदामा जी को पता थी उन्होंने सोचा की अगर जगत के पालनहार ने यह चने खा लिए तो अनर्थ हो जायेगा और उन्होंने अकेले ही चने खा लिए जिसके कारण जीवन भर उन्हें दरिद्रता सहनी पड़ी।
सुदामा जी का अगला जन्म
मृत्यु के पश्चात सुदामा का अगला जन्म राक्षसराज दम्भ के यहां शंखचूण के रूप में हुआ था।
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