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स्वामी हरिदास (एक प्रसंग)





स्वामी हरिदास (एक प्रसंग)  

राम तनु से तानसेन का सफर और भक्त हरिदास जी और राजा अकबर का संवाद

रामतनु बचपन में पक्षियों की आवाज़ निकालते थे उस समय उनके मथुरा में हरिदास जी भी कृष्ण भक्ति के लिए माने जाते थे जो एक संगीतकार थे। 
 
संगीत की प्रारंभिक शिक्षा हरिदास जी से ले कर आगे की शिक्षा के लिए ग्वालियर चले गए वह हजरत मुहमद गौस साहब से आगे की शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् इन्होने पुनः हरिदास जी से नाद की शिक्षा ग्रहण की। 

अब रामतनु एक अद्भुत गायक बनचुके थे , रीवा नरेश ने इनसे खुश हो कर इन्हे अपने मुख्य गायक मंडल में शामिल कर लिया था , 

और यही से आगे इनका नाम तानसेन पड़ा 

एक बार इन्हे राजा अकबर के दरबार में अपनी कला दिखने का मौका मिला , 

और अकबर ने इन्हे अपने दरबार में एक रत्न के रूप में शामिल कर लिया। 

एक बार जब यह गायन कर रहे थे तो अकबर ने इनसे पूछा की जब आप इतना अच्छा गाते हैं तो आपके गुरु कितना अच्छा गाते होंगे।  

तब तानसेन ने कहा के मेरे गुरु कही भी जा कर नहीं गाते, तब अकबर ने कहा की में चलता हु उनको सुनने।

तब तानसेन ने कहा की वह केवल राधा माता के आदेश से राधा माता के लिए ही गाते हैं  

अकबर नहीं माने और तानसेन के साथ एक साधारण व्यक्ति का रूप बना कर मथुरा गए, मथुरा में प्रतीक्षा करते रहते की कब मुझे हरिदास जी को सुनने का मौका मिले पर दिन बीतते जाते थे किन्तु वह हरिदास को सुन नहीं पाए। 

एक दिन रात्रि में अचानक से तानसेन से कहा की राधा माता का आदेश हुआ हैं उनके लिए कुछ गाओ, तानसेन ने आदेश का पालन किया और गायन चालू किया , हरिदास जी को तानसेन के सुर ठीक नहीं लग रहे थे और फिर उन्होंने भी तानसेन के साथ गायन शुरू किया , यह सुन कर अकबर से रहा नहीं गया और वह उनको सुनने के लिए बैठ गए , और सुन कर उनके मधुर संगीत में रम गए। 

संगीत पूर्ण होने के बाद हरिदास जी ने अकबर से पुछा की महाराज कैसा लगा आपको संगीत ?, अकबर एक दम से चौक गए की हरिदास जी को  कैसे पता की में  राजा हु , तब हरिदास जी ने कहा की आपको छुपना नहीं आ रहा था, तब ही में समझ गया था की आप कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं 

और उन्होंने तानसेन को भी कहा की मेरा शिष्य कभी गलत नहीं गा सकता, मेरे शिष्य ने मुझसे गायन करवाने के लिए अपने सुर में गलती की थी, 

अकबर उनकी भक्ति की भावना से बहुत आश्चर्यचकित हुए. 

अकबर ने तानसेन को कहा की आप बहुत अच्छा गाते हो और आपके गुरु और बहुत ही बढ़िया गाते हैं ऐसा क्यू  की तुम उनके जैसा नहीं गा  पाते ?

तब तानसेन ने एक बात कही की 

में आपके लिए गाता हु और वे प्रभु के लिए गाते हैं यही अंतर हैं जो मनुष्य को श्रेष्ठ बनाता हैं। 

जब किसी भी कार्य को हम समर्पित भाव से करते हैं तो उसमे हम सफलता पाते हैं और यदि फल की इच्छा  करते हैं तो हमारा व्यव्हार फल के अनुरूप जो जाता है.

श्रीमद भागवत गीता में भी लिखा की "कर्म करो फल की चिंता मत करो"

 






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